जैसे दीपक के जलने से
जलता है अँधेरा ,
और अँधेरे के जलने से
जलती है रात !
ठीक वैसे ही
क्यों नहीं जलती
ईर्ष्या हमारे दिलों की !
जलाने से तो जलता है
जल भी ,
तो जलनशील
चीजों को जलने में
फिर कैसी देर !
जला दो दिलों की जलन को
कि जलने लगें
हमारे दिलों में
फिर से उजालों के दीप !