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फ़रवरी, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"मेरा भारत महान! "

सरकार की विभिन्न  सरकारी योजनायें विकास के लिए नहीं; वरन "टारगेट अचीवमेंट ऑन पेपर" और  अधिकारीयों की  जेबों का टारगेट  अचीव करती हैं! फर्जी प्रोग्राम , सेमीनार और एक्सपोजर विजिट  या तो वास्तविक तौर पर  होती नहीं या तो मात्र पिकनिक और टूर बनकर  मनोरंजन और खाने - पीने का  साधन बनकर रह जाती हैं! हजारों करोड़ रूपये इन  योजनाओं में प्रतिवर्ष  विभिन्न विभागों में  व्यर्थ नष्ट किये जाते हैं! ऐसा नहीं है कि इसके लिए मात्र  सरकारी विभाग ही  जिम्मेवार हैं , जबकि कुछ व्यक्तिगत संस्थाएं भी देश को लूटने का प्रपोजल  सेंक्शन करवाकर  मिलजुल कर  यह लूट संपन्न करवाती हैं ! इन विभागों में प्रमुख हैं स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा; कृषि, उद्यान, परिवहन,  रेल, उद्योग, और भी जितने  विभाग हैं सभी विभागों  कि स्थिति एक-से- एक  सुदृढ़ है इस लूट और  भृष्टाचार कि व्यवस्था में! और हाँ कुछ व्यक्ति विशेष भी व्यक्तिगत लाभ के लिए, इन अधिकारीयों और  विभागों का साथ देते हैं; और लाभान्वित होते है या होना चाहते ह

आम आदमी: " Used To "

देश जल रहा है; लोग झुलस रहे हैं, सरकार और सरकारी  महकमे भ्रष्टाचार में संलिप्त हैं! युवा आधुनिकता की  चकाचौंध में भ्रमित है; मीडिया मुद्दों में  उलझा रही है! शिक्षा व्यवसाय बन गयी  धर्म लोगों को गुमराह  कर रहा  है ; प्रगति और विकास  मानवता और प्रकृति का पतन कर रहें हैं! कोई भी न तो  सुखी है औरन ही संतुष्ट! एक ओर जहाँ समाज  सोंच बदलने की बात करता है  वहीँ दूसरी ओर वह सब  वर्जनाएं तोड़ता जा रहा है ; स्त्री को माँ, बहन और बेटी नहीं, एक भोग की वस्तु बना दिया है!  सिनेमा और साहित्य  सब एक ही ले में  बह रहें हैं! और आम आदमी समझता है इसमें  उसकी क्या गलती है? और उसका क्या लेना - देना है! परन्तु जब तक  आम आदमी "Used To"  रहेगा तब तक  न तो देश बदल सकता है और न ही समाज! अब पानी नाक तक  आ चुका है और  इअससे पहले सिर्फ तुम्हें और  तुम्हें ही डुबा  दे; खड़े हो जाओ और  जहाँ जिस जगह से  खड़े हो चल पड़ो इन सब को बदलने के लिए, क्योंकि जीवन अनंत है! समाज सभ्यता और देश को बचाने के

कुछ तो करना होगा !

दिन भर पूरे शहर की  गंदगी और  कचरा साफ़ करने के बाद; बमुश्किल कमा पाता है दो सौ रुपये! इन रुपयों में चार लोगो का पेट भरना  और झुग्गी का  किराया देना  कितना मुश्किल होता है ; और पब में  चार लोगों की मस्ती का  आठ हजार का बिल भरना कितना आसान !! सरकार  बनाती है  योजनायें और स्लोगन  "पढ़ेगा इंडिया तभी बढ़ेगा इंडिया" पर  योजनायें नेता और  अधिकारियों के  खर्च भर को रह जाती हैं और  स्लोगन ..........................!!!! क्या कभी  कोई ऐसी भी  योजना बनेगी  जब सरकारी  स्कूलों में  'मिड डे मील'  और 'ड्रेस कोड' से  निकल कर "इन" दलितों के कल का  उजाला बनकर  इनका भविष्य  रौशन कर पायेगी, या यूँ ही ????????

कार्ल गर्ल !

जिश्म को जिन्दा रखने के लिए  गुजारनी पडती हैं  उसे रातें "unfamiliar "  जिश्मों के साथ ! कि जिन्दा रख सके  कुछ रिश्ते जो या तो जन्म से मिले  या थोप दिए हैं  समाज ने उस पर ! और वह मजबूर है जीने के लिए इसी समाज में बनकर  कार्ल गर्ल ! 40  का बीमार -अपाहिज पति  68 की बूढी मां और 7  वर्ष की बच्ची  वह  स्वयं 27  बसंत देखे हुए  अभिशापित सुंदर ! इन सब को जिन्दा रखने के लिए  समाज ने मजबूर किया  उसे कार्लगर्ल बनने को  ! ऑफिस का एम् डी और पूरा मेल स्टाफ, सबको बस  एक ही चाह! फिर क्यों वह  यहसब सहती  उसने कर लिया निर्णय  अब वह नही करेगी सहन  और समाज की अवधारणा को  कर दरनिकार  बनाएगी इसको जीने का साधन ! यह कोई शौक नहीं है और न ही कोई  बनना चाहेगी कार्ल गर्ल ! पर जब हर पुरुष ने  उसके जिश्म की  तरफ ही देखा और नोचना चाहा ! फिर वह किस धर्म  और पाप का चिंतन करती ! कम से कम  आज उसकी मां, पति और बच्ची  जीवित तो हैं ! भले ही "स्त्री " मर गयी हो ; इसमें क्या दोष है