आदमी न जाने कौन-कौन सी डगर चला !!
मुसीबतों का जो फिर सिलसिला चला,
जिन्दगी में रंज-ओ-गम का जलजला चला !
फिर भी कर वो पूरा सफर चला .............
आदमी न जाने कौन-कौन सी डगर चला !!
कदम-कदम पर सबर का इम्तिहान चला,
मुकद्दर के हांथों मजबूर हो इंसान चला !!
भटकते-भटके वो मगर चला .............!
आदमी न जाने कौन-कौन सी डगर चला !!
जहाँ में जिन्दगी को बिखेरता चला ,
अपनी ही उलझनों को समेटता चला !
करके वीरां अपने दीवार-ओ-दर चला......!
आदमी न जाने कौन-कौन सी डगर चला !!
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